शोला सा दिल मेरा दहक रहा ये आग न अब भड़काये कोई, आग जब ख़ुद ही लगाई सोज़िश-ए-उल्फ़त क्या बुझाये कोई। ख़ुद अपने हाथों बड़ी बेदिली से इश्क़ को मौत के घाट उतारा, हमीं मगरूर हुए तेरे मेरे दरमियाँ के फ़ासिले क्या मिटाये कोई? के दिल-ए-रेज़ा लेकर अब भटकते जीना भी तो मुहाल है, रुस्वा मुहब्बत की मेरे अब यूँ महफ़िलों में दास्तां न सुनाये कोई। ये मुहब्बत भी करे तो चैन नहीं न करने पर भी बेक़रारी छाए, मान मेरी करलो तौबा इश्क़ से और दिल भी न लगाये कोई। इम्तिहान-ए-ज़ब्त इस ज़िन्दगी के अब ख़त्म नहीं होते जाने क्यूँ, दुखाया गया है बहुत अब ये दिल मेरा न दुखाये कोई। उनसे कहना के फ़िर आए याद हमारी तो बेझिझक चले आए, यूँ हाल न पूछे ज़माने से हमारा, के फ़िर से ये दिल न धड़काये कोई। ♥️ Challenge-787 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।