जब जब मेरी आँखों में दर्द का पैग़ाम आया, मैं उसके ख़त को आँसुओं से बहा आया ॥ जब जब उसे पता चला कि हम मरते हैं उसपेे, हमें मरता देख उसके मन में गुमान आया ॥ सुनते थे कि जन्नत नसीब होती है आशिकों को, ईमान भी गँवाया और उपर इश्क भी ना काम आया ॥ पेट की अंतड़ियाँ भी दुहाई देतीं रहीं हमें, कब,कितना नाजाने कौन कौनसा जाम आया ॥ बहुत इतराता फिरता था अपनी लहरों पर, दिल समंदर था मेरा पर उसकी कश्ती ना डुबा पाया ॥ हमने तब भी कलमा ना पढ़ा उसका नाम पढ़ते रहे, जब हमारे सिरहाने पे मौत का फ़रमान आया ॥ छाले पड़ते रहे "अनवर" के फ़ेफ़डों में, बग़ैर तेरे हमें जब जब भी साँस आया ॥ ख़ुदा भी त्यार है रोने को जो "अनवर" ने शेयर सुनाया, ये देखो मियां कितना घिर घिर के बादल आया ॥ #aK 📝अनवर