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जय माँ वीणा वादिनी स्मृति अच्छी स्मृति से चहक उ

जय माँ वीणा वादिनी 
स्मृति 

अच्छी स्मृति से चहक उठती हैं दीवारें भी,
बुरी स्मृति में तो कैद लगे प्रकृति भी। 

शख्स एक वही है दोनों जगह,
मेरे दिल और उसके दिमाग में भी।

नहीं मानता मन दूर होकर उससे,
मगर आता नहीं मुझे, किसी को मनाना भी।

बीते हैं कुछ ही पहर अभी वियोग को, 
लगे सदियों से सूना यादों का कारवां भी।

आज याद आ रहे सारे काम पुराने,
जो इन्तज़ार में थे एक अर्से से कभी।

कब तक निहारूं ये दीवारें ये प्रकृति,
दौड़े निगाहें यत्र-तत्र  अनमनी उलझी भी।

वियोग एक पल भाता नहीं संजोगिनी को,
कैसे कहूँ सूनी पड़ीं हैं तुझ बिन ये स्मृतियाँ भी।

नीना झा

©Neena Jha
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Neena Jha

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