सबको अपने घर... गाँव... और दूर-दूर तक पहुँचाती है छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है कभी आवाज करके जोरों की... बहुत खूब डराती है निकले बगल से... सब डर जायें...ऐसी सीटी बजाती है कभी आराम से निकलकर... आगे ही चली जाती है छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है कभी समय पर... कभी देर ही... पर जरूर आ जाती है आकर हम सबके मन में... जाने की उम्मीद जगाती है कभी-कभी देरी से आकर... समय पर पहुंचाती है पहुंचे सब.. जहां जाना हो... यही आस दिखलाती है बैठकर गाड़ी में फिर सब यात्री... यही बात दोहराते हैं छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है सफर यहाँ का सबको भाता... और सुकून दे जाता है तेज चलना इसका अंदाज... सबको ही रास आता है अगर थोड़ा भी निर्देश... रास्ता खाली मिले तो बहुत तेज.. शांति से चलकर... समय रहते पहुँचाती है पर रास्ता व्यस्त हुआ तो... फिर सबको बहुत रुलाती है छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है कम खर्च में इतनी सुविधा... भला कौन दे जाता है? सभी यात्रियों का ठीक से ध्यान भला कौन रख पाता है कभी हमारी लापरवाही... हमपे ही भारी पड़ जाती है थोड़ी जल्दबाजी करने से एक बड़ी दुर्घटना हो जाती है चलें थोड़ा ध्यानपूर्वक... ताकि अनहोनी ना होने पाए समय पर पहुचें सब... बस यही बात याद दिलाती है छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है मन की रैलगाड़ी....