ज़मीं में कण रेत से लगे... ज़मीं में कण रेत से लगे, उगते ख़ार खेत से लगे। बोया धन बंज़र हुए, दग़ा आपकी, ख़ंज़र से लगे। यूँ घंटों बिताया आपकी हिज्र में, वक़्त आया, हक़ीक़त सपने से लगे। आज लफ़्ज़ों में गिरावट थी, न जाने क्यूँ दुनिया से लगे। हर शख़्श टूटा है यहां, देखा मुड़कर, वो टुकड़ों से लगे। कुछ बात छुपी है बेवफ़ाई में, बंद कमरे में दीवार चरमराए से लगे। दर्द देकर वो बहुत ख़ुश थे, महफ़िल में वो तन्हा से लगे। शीशे की तरह लोग कहां यहां, झांका ख़ुद को,रूह आईने से लगे। ©श्वेतनिशा सिंह~🕊️ ज़मीं में कण रेत से लगे... ज़मीं में कण रेत से लगे, उगते ख़ार खेत से लगे। बोया धन बंज़र हुए, दग़ा आपकी, ख़ंज़र से लगे।