मिली एक अप्सरा ना सोचा था कभी भी ज़रा ज़रा किस्मत लेगी मोड़ इतना बड़ा क्या तारीफ़ करूं उसकी जो हैं वो नहीं होगी कोई उस तरह खिलते सूरज सी लाली है उसकी आंखें तो दो मय की प्याली हैं उसकी बातों से दिल जीत लेती है जब अपने सुंदर मुख से प्यारे से बोल देती है सबसे हट कर दिया रूप खुदा ने हाथों से अपने तराशी मूरत हो जैसे फिर खुद ही ये सोचा ये कमाल हुआ कैसे उस से कोई ना दूजा मिला ऐसा रूप ना रंग ना ढंग हो जिसका उस जैसा तारीफ करते कलम नहीं रुकती शब्दों की भीड़ उसकी प्रशंसा में आने को है जुड़ती बना उसको खुदा को होता है गर्व खुद पर कितना नायब तोहफ़ा दिया उसने धरती पर ©Dr Supreet Singh #Apsaraa