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नदी के दो किनारे हैं, एक वो जिस पर ठहरने को






 नदी के दो किनारे हैं, एक वो जिस पर ठहरने को मन तैयार नहीं और दूसरा किनारा वो, जहां के बीच से मांझी ही भटक गया हो! क्या होगा उस सैलानी का बीच दरिया में फंसा रहने से...? ओ मेरे माँझी! क्या कभी ये सोचा है तुमने..?

मेरे मांझी,
 क्या तुम्हें नहीं लगता की किसी सैलानी को बीच दरिया में छोड़ जाना भी गुनाह है, और वो भी उस हालत में जब उस पर न तो पतवार चलानी आती हो और न ही आता हो तैरना। खैर ऐसे मैं कोई करे भी तो क्या करे, हम्म्म ? शायद... वो मोहब्बत कर लेगा अब उस बहते समंदर से ही और अब चाहे वो एक बालू की भ





 नदी के दो किनारे हैं, एक वो जिस पर ठहरने को मन तैयार नहीं और दूसरा किनारा वो, जहां के बीच से मांझी ही भटक गया हो! क्या होगा उस सैलानी का बीच दरिया में फंसा रहने से...? ओ मेरे माँझी! क्या कभी ये सोचा है तुमने..?

मेरे मांझी,
 क्या तुम्हें नहीं लगता की किसी सैलानी को बीच दरिया में छोड़ जाना भी गुनाह है, और वो भी उस हालत में जब उस पर न तो पतवार चलानी आती हो और न ही आता हो तैरना। खैर ऐसे मैं कोई करे भी तो क्या करे, हम्म्म ? शायद... वो मोहब्बत कर लेगा अब उस बहते समंदर से ही और अब चाहे वो एक बालू की भ