मैंने जब ईश्वर के बारे में जानने की कोशिश की तो, कभी पिता, कभी माँ का स्वरूप सामने आ खड़ा होता। चिकित्सक,शिक्षक,सैनिक हों या पुलिस, सब एक जैसे। भामाशाह हों या पत्रकार जो राष्ट्रहित के साथ, मानव जीवन को बचाने की के लिए जो ढाल बने हैं, सभी में ईश्वर दिखाई दिया। मैं जब "अन्नदाता" को देखता हूँ तो, ईश्वर के साक्षात दर्शन पाता हूँ। "किसान" मुझे ईश्वर का प्रतिरूप मालूम हुआ। बाकी सब उसके अंश, तुम्हें नही लगता क्या ? उसी की उपज खा खा कर ही तो, सब इतने योग्य हुए हैं। अपनी भूमि को कड़ी मेहनत से उपजाऊ बनाकर बीजता है किसान बिल्कुल ईश्वर की तरह और पूरे मन से तन से धन से जुट जाता है पूरी दुनिया की भूख मिटाने की चाह में। सहता है आँधी ओले बरसात बे-मौसम की आह! करता हुआ पर उम्मीद नही छोड़ता। लेकिन बीजे गए सभी बीज कभी भी एक जैसे पौधे नही बन पाते। कोई पतला, कोई मरा सा किसी को कीड़ी लग गई तो कोई जंगली जानवरों या पशुओं की भेंट चढ़ गया "किसान" दोष किसे दे। अपना ही माथा ठोक फिर जुट जाता है अगली पैदावार को सुरक्षित और मन मुताबिक़ पाने की कोशिश में। ईश्वर भी करता है ठीक किसान की