Nojoto: Largest Storytelling Platform

जैसा आचरण, जैसा व्यवहार, जैसे बोल और जैसी सोच माता

जैसा आचरण, जैसा व्यवहार, जैसे बोल और जैसी सोच माता-पिता की होती हैं, सन्तान उसी मे ढल जाती हैं। 
किसी को अपनी परवरिश मे खोट नजर नही आती, मगर यही सोच बड़े बड़े मुजरिम भी बनाती हैं।
आयुष पंचोली 
©ayush_tanharaahi माता-पिता को मिलने वाला मान-सम्मान अपने बच्चों के गुणो से ही आंका जाता हैं। बच्चे को मिली सफलता का जितना श्रेय माता-पिता को दिया जाता हैं। उतना ही उसके कुकर्मो व आचरण और व्यवहार का श्रेय भी माता-पिता को ही जाता हैं। 
आपको दुनिया आपकी सन्तान के आचरण और व्यवहार का मुख्य कारण ही समझती हैं। इसलिये बच्चों मे बालपन से ही ऐसे संस्कार दे की वे, अपना ही नही आपका मान-सम्मान भी कभी डिगने ना दे। क्या सही हैं, क्या गलत उन्हे इसका बोध अवश्य करायें । और उन्हे उनकी गलतियों का एहसास भी करायें । प्यार इन्सान को सुधार तो सकता हैं, मगर जरुरत से ज्यादा प्यार इन्सान को बिगाड़ भी देता हैं, खासकर उस उम्र का प्यार जब उसे सीखना होता हैं, दुनिया और दुनिया वालों के नजरिये को, अपने आचरण के मूल को। 
ऐसा ना हो आपका अंध प्यार आपकी सन्तान को वह स्वरूप दे दे जिसे आप खुद पसंद नही कर पायें। अपनी सन्तान का भविष्य आपके हाथों मे उसे आपको किस रूप मे ढालना हैं यह आपको विचार करना होगा। जिस तरह मिट्टी को कई रूपों मे ढाला जाता हैं, ठीक उसी प्रकार सन्तान भी मिट्टी के ही समान हैं, बस उसे सही रूप मे ढालने के लिये, अच्छे संस्कारो की जरुरत हैं।

जैसा आचरण, जैसा व्यवहार, जैसे बोल और जैसी सोच माता-पिता की होती हैं, सन्तान उसी मे ढल जाती हैं। 
किसी को अपनी परवरिश मे खोट नजर नही आती, मगर यही सोच बड़े बड़े मुजरिम भी बनाती हैं।

यह मेरे निजी विचार हैं। किसी को बुरा लगे तो मुझे माफ़ किजियेगा।
जैसा आचरण, जैसा व्यवहार, जैसे बोल और जैसी सोच माता-पिता की होती हैं, सन्तान उसी मे ढल जाती हैं। 
किसी को अपनी परवरिश मे खोट नजर नही आती, मगर यही सोच बड़े बड़े मुजरिम भी बनाती हैं।
आयुष पंचोली 
©ayush_tanharaahi माता-पिता को मिलने वाला मान-सम्मान अपने बच्चों के गुणो से ही आंका जाता हैं। बच्चे को मिली सफलता का जितना श्रेय माता-पिता को दिया जाता हैं। उतना ही उसके कुकर्मो व आचरण और व्यवहार का श्रेय भी माता-पिता को ही जाता हैं। 
आपको दुनिया आपकी सन्तान के आचरण और व्यवहार का मुख्य कारण ही समझती हैं। इसलिये बच्चों मे बालपन से ही ऐसे संस्कार दे की वे, अपना ही नही आपका मान-सम्मान भी कभी डिगने ना दे। क्या सही हैं, क्या गलत उन्हे इसका बोध अवश्य करायें । और उन्हे उनकी गलतियों का एहसास भी करायें । प्यार इन्सान को सुधार तो सकता हैं, मगर जरुरत से ज्यादा प्यार इन्सान को बिगाड़ भी देता हैं, खासकर उस उम्र का प्यार जब उसे सीखना होता हैं, दुनिया और दुनिया वालों के नजरिये को, अपने आचरण के मूल को। 
ऐसा ना हो आपका अंध प्यार आपकी सन्तान को वह स्वरूप दे दे जिसे आप खुद पसंद नही कर पायें। अपनी सन्तान का भविष्य आपके हाथों मे उसे आपको किस रूप मे ढालना हैं यह आपको विचार करना होगा। जिस तरह मिट्टी को कई रूपों मे ढाला जाता हैं, ठीक उसी प्रकार सन्तान भी मिट्टी के ही समान हैं, बस उसे सही रूप मे ढालने के लिये, अच्छे संस्कारो की जरुरत हैं।

जैसा आचरण, जैसा व्यवहार, जैसे बोल और जैसी सोच माता-पिता की होती हैं, सन्तान उसी मे ढल जाती हैं। 
किसी को अपनी परवरिश मे खोट नजर नही आती, मगर यही सोच बड़े बड़े मुजरिम भी बनाती हैं।

यह मेरे निजी विचार हैं। किसी को बुरा लगे तो मुझे माफ़ किजियेगा।