करुणा बिखर गयी संवेदना भी मौन है मूल्यों के मूल्य छूटे चेतना भी गौण है बिलख रही है अब तो ऋचाओं की सूक्तियाँ पुछती हैं प्रश्न देखो, गीता की उक्तियाँ सशंकित खड़ा क्यूँ हर एक सम्बंध है उत्तरों कि खोज में मन का हर द्वंध है