Nojoto: Largest Storytelling Platform

"खुशी के गुब्बारे" ~अनुशीर्षक पढ़े

"खुशी के गुब्बारे"
                 ~अनुशीर्षक पढ़े

-रोली रस्तोगी
©a_girl_inkings_her_emotions Pic credit - @pinterestindia
Title ➡️ 【 "खुशी के गुब्बारे" 】

भैया जरा एक चाय देना..
अरे! मनोज भाई आप इतनी सुबह-सुबह यहाँ?
हाँ भाई सुबह टहलने निकला था सोचा आज टपरी पर चाय पीते चलूँ आपकी हाथ की चाय पिये बड़े दिन हो गए, अरे भाई अभी पिलाता हूँ।

गरमा-गरम चाय कुल्हड़ में। वाह! छोटू मज़ा आ गया। मनोज चाय की चुस्की लेते हुए इधर-उधर ताक रहा होता है की तभी उसकी नज़र एक छोटे बच्चे और उसके पिता के ऊपर पड़ती है, जो अपने बाबा के साथ निकल पड़ा था उनका हाथ बटाने, हाथों में ढेर सारे गुब्बारे लिये इधर से उधर भटक रहा था, इस आस में की शायद इस रंगीन गुब्बारे की चमक  देख किसी का मन कर जाऐ लेने को, मनोज टकटकी लगाए देखे जा रहा था की कैसे एक गुब्बारे बेचने हेतु इतना संघर्ष कर रहा, वो बच्चा कड़ी धूप में नंगें पैरों सहित बेफिक्र हो कर चारों ओर घूम रहा, इस को देख मनोज अपने ख्याल में खो गया सोचने लगा की पिता का साथ देना खेलने कूदने की उम्र में ये बच्चा कितनी जोश से काम कर रहा, की तभी आवाज आयी साहब ओ साहब! गुब्बारा लोगे क्या? बहुत ही रंग बिरंगे है अपनी गुड़िया के लिऐ लेलो उसे जरूर पसंद आऐंगे, राहुल के इतना कहने भर की देर थी की मनोज ने सारे के सारे गुब्बारे ले लिऐ, राहुल का चेहरा मानो खिलखिलाते गुलाब सा हो उठा , मनोज ने उत्सुकता पूर्वक पूछ पड़ा अरे! बेटा तुम इतना खुश किस बात से हो रहे?
"खुशी के गुब्बारे"
                 ~अनुशीर्षक पढ़े

-रोली रस्तोगी
©a_girl_inkings_her_emotions Pic credit - @pinterestindia
Title ➡️ 【 "खुशी के गुब्बारे" 】

भैया जरा एक चाय देना..
अरे! मनोज भाई आप इतनी सुबह-सुबह यहाँ?
हाँ भाई सुबह टहलने निकला था सोचा आज टपरी पर चाय पीते चलूँ आपकी हाथ की चाय पिये बड़े दिन हो गए, अरे भाई अभी पिलाता हूँ।

गरमा-गरम चाय कुल्हड़ में। वाह! छोटू मज़ा आ गया। मनोज चाय की चुस्की लेते हुए इधर-उधर ताक रहा होता है की तभी उसकी नज़र एक छोटे बच्चे और उसके पिता के ऊपर पड़ती है, जो अपने बाबा के साथ निकल पड़ा था उनका हाथ बटाने, हाथों में ढेर सारे गुब्बारे लिये इधर से उधर भटक रहा था, इस आस में की शायद इस रंगीन गुब्बारे की चमक  देख किसी का मन कर जाऐ लेने को, मनोज टकटकी लगाए देखे जा रहा था की कैसे एक गुब्बारे बेचने हेतु इतना संघर्ष कर रहा, वो बच्चा कड़ी धूप में नंगें पैरों सहित बेफिक्र हो कर चारों ओर घूम रहा, इस को देख मनोज अपने ख्याल में खो गया सोचने लगा की पिता का साथ देना खेलने कूदने की उम्र में ये बच्चा कितनी जोश से काम कर रहा, की तभी आवाज आयी साहब ओ साहब! गुब्बारा लोगे क्या? बहुत ही रंग बिरंगे है अपनी गुड़िया के लिऐ लेलो उसे जरूर पसंद आऐंगे, राहुल के इतना कहने भर की देर थी की मनोज ने सारे के सारे गुब्बारे ले लिऐ, राहुल का चेहरा मानो खिलखिलाते गुलाब सा हो उठा , मनोज ने उत्सुकता पूर्वक पूछ पड़ा अरे! बेटा तुम इतना खुश किस बात से हो रहे?