अरसा हुआ तुम्हे देखे लेकिन में नही भूला तुमसे हुई कोई एक भी मुलाकात जिसे अब तुम मानती हो कोई अभिशाप तुम्हे याद है ,पहला गिफ़्ट मैने तुम्हे मीना बाज़ार से दिलाया था फिर तुमने उन झुमकों को बड़े इत्मिनान से अपने कानों में सजाया था गांव की किसी कच्ची सड़क पर जब तुम हिल्लोर खाते आती थी तुम्हारे उस रूप के याद आने पर ये आंखे आज भी, विरह गीत गुनगुनाती प्रेम शाश्वत है, ये मैं जानता हूँ इसके विरोध को बहुत बड़ा गुनाह मानता हूँ तुम्हारे माथे पर जो भय की लकीरें है उन्हें मिटाना चाहता हूँ प्रेम को एक दिन में बाँधना ठीक नही इसे जन्मो तक अमर बनाने के लिए ,एक बार फिर से संजीदा गुफ़्तगू करने की इजाजत मांगता हूं...!! #valentine#प्रेम#विरह#सत्य#अमरप्रेम#Nojoto#Hardikनंदमाया