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बचपन और शैतानी दादाजी हमेशा दोपहर में सुला कर दरवा

बचपन और शैतानी दादाजी हमेशा दोपहर में सुला कर दरवाजा बंद कर दिया करते थे।
मैं नालायक उनके सोते ही आँगन की दीवार कूद कर छत के रास्ते से बाहर चली जाया करती थी।
एक दिन पड़ोस के एक लड़के ने ग़लत तरीके से छुआ।
छोटी थी ज्यादा कुछ नहीं पर समझ गई कि ग़लत हुआ है।।

अब सोचती हूँ कि दादाजी बुढापे में सठिया नहीं गए थे,
बल्कि मुझे सुरक्षा दे रहे थे।। बचपन की नासमझी
बचपन और शैतानी दादाजी हमेशा दोपहर में सुला कर दरवाजा बंद कर दिया करते थे।
मैं नालायक उनके सोते ही आँगन की दीवार कूद कर छत के रास्ते से बाहर चली जाया करती थी।
एक दिन पड़ोस के एक लड़के ने ग़लत तरीके से छुआ।
छोटी थी ज्यादा कुछ नहीं पर समझ गई कि ग़लत हुआ है।।

अब सोचती हूँ कि दादाजी बुढापे में सठिया नहीं गए थे,
बल्कि मुझे सुरक्षा दे रहे थे।। बचपन की नासमझी
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