चाकू दूँगा मार ( हास्य रचना ) हम तो गये थे उसकी गली करने दीदार देखते ही हमको उसने गमला दिया मार जी इस पर भी न था जी उसका भरा बुला के भाइयों को हड्डियां तोड़ी जार -जार समेट कर के अरमानों को हम लौट रहे थे दूजी गली में हमको दिखी फिर से एक नार बैठी थी घर के कोने में वो तो चुपचाप देखते ही जाग उठा सोया हुआ प्यार पानी के बहाने हमनें पूछा हालचाल और भी बातें हमनें कीं थीं दो - चार इससे पहले कि आगे बढ़ती अपनी बात लेकर के लाठी आ गया उसका तगड़ा यार कूट -कूट करके मुझे प्यार का उतारा बुखार छोड़ कर के वो गली हम तो भाग आये दिल पे हाथ रख के कसम ये खाई बार -बार अब न करेंगे किसी दूसरी से हम तो आंखें चार अपने लिए तो भली है वो जो घर पर पड़ी है उस की सूरत में अब तो हूरें दिखें हजार पिट-पिट के अब तो ये बात गये जान अपनी ही लुगाई से करना इश्क़ -विश्क, प्यार -व्यार वरना बेरहम है ये दुनिया बड़ी करने न देगी तुम्हें हर किसी से प्यार लाख पते की ये बात करता हूँ बार - बार घर में ही ढूंढना तुम बाहर नहीं है प्यार बात मेरी अब नी माने तो चाकू दूँगा मार।।। प्रवीण राणा वर्मा।।। 01-11-2020 ©Praveen Rana Verma हंस लीजिए #JusticeForNikitaTomar