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नाज़नीन के नखरे सब के सर आँखों पर क्या रसिया क्या

नाज़नीन के नखरे सब के सर आँखों पर 
क्या रसिया क्या काजी अचारी हुए 
सोने मुखरे  तलक चर्चा  सीमित न रहा
उनके भौंहें के भी तरफदारी हुए 
राह चलते मजनूओं की औकात क्या सामने 
बादशाह भी चाहत में भिखारी हुए 
भाला बर्छी चलाने की जरूरत न इन्हें 
इनके नैना हीं चोखी कटारी हुए 
रात जैसी अँधेरी बालों की न पूछ 
खुली जुल्फें आशिकों के फुलवारी हूए 
कातिलाना अदाओं की बात विलग, इनके 
त्योरी की चढ़ावत हीं चिंगारी हुए 
थिरकते उनके जो तन, पर न जाये कफ़न 
नाज़रिन पे ये नचावट भी भारी हुए.... 

गुस्ताखी माफ़ #श्रृंगार_खिचड़ी।
नाज़नीन के नखरे सब के सर आँखों पर 
क्या रसिया क्या काजी अचारी हुए 
सोने मुखरे  तलक चर्चा  सीमित न रहा
उनके भौंहें के भी तरफदारी हुए 
राह चलते मजनूओं की औकात क्या सामने 
बादशाह भी चाहत में भिखारी हुए 
भाला बर्छी चलाने की जरूरत न इन्हें 
इनके नैना हीं चोखी कटारी हुए 
रात जैसी अँधेरी बालों की न पूछ 
खुली जुल्फें आशिकों के फुलवारी हूए 
कातिलाना अदाओं की बात विलग, इनके 
त्योरी की चढ़ावत हीं चिंगारी हुए 
थिरकते उनके जो तन, पर न जाये कफ़न 
नाज़रिन पे ये नचावट भी भारी हुए.... 

गुस्ताखी माफ़ #श्रृंगार_खिचड़ी।