पिता! माना कि फ़र्श से लेकर अर्श तक धोखा ही धोखा है मगर ये कोई नई बात भी नहीं इसी ज़िन्दगी में नया लुत्फ़ ढूँढ़ना है और हर आदमी की शिकायत भी अपनी जगह सही है मगर इससे भी बारीक़ बातें हैं जो मँडराती हैं ख़ामोश फ़िज़ा में पिता! पाकर तुझसे ग़ैर मामूली हौसला इरादा फिर से होता है चट्टान # पिता! पाकर तुझसे हौसला इरादा बनता है चट्टान