मुलाक़ातों में नहीं, न ही मेरी बातों में मिलते हो आकर के तन्हा रातों को तुम यादों में मिलते हो परिंदा पर भी न मारता ज़हन के जिस हिस्से में टटोलूँ तो धूमिल पड़े मौन निशानों में मिलते हो कहाँ रहते हो आजकल, महसूस भी न होते हो मायूसी में,सरगोशी में, मेरी आहों में मिलते हो मौसमी नहीं बुखार मेरा, ये सदाबहार आलम है चरागों में ओझल होते, बस अँधियारों में मिलते हो क्यों हर याद में तुम मिले, क्यों लक़ीरों में नहीं कभी ख़न्दीदो में, कभी नम दीदो में मिलते हो ♥️ Challenge-986 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।