अंधेरों की बस्ती मे रौशनी का पता खोजती हुँ, मैं खुश रहने की बस एक बजह खोजती हुँ, न तुझसे न तुझ जैसे से, मैं रंजिश रखती हुँ, फुर्सत कहाँ खुदसे, मैं खुदपे ही फ़िदा जो रहती हुँ,