प्रेम में प्रेमी ki ज़िन्दगी प्रेमी से मज़दूर में तब्दील हो जाती है । एक टेम आता है ज़ब उसके जीवन दृश्य में प्रेमिका नहीं रहती, वो हिंदी फ़िल्म के हीरो से भीड़ में खड़े एक्स्ट्रा में तब्दील हो जाता है। i again repeat .. प्रेम एक पूँजी वादी प्रक्रिया है ... स्टोव में तेल होने जैसी । रोटी के फूलने जैसी । ©बाबा ब्राऊनबियर्ड i again repeat 🙂