मज़दूर है ! घर बहुत दूर है जाना भी जरूर है पैदल चलने को मजबूर है साहब हम तो मज़दूर है ना खाने को रोटी है ना बचे हैं पैसे घुट-घुट कर जीने को मजबूर है साहब हम तो मज़दूर है छिन गई रोज़ी हुऐ बेरोजगार है क्या मेरा कसूर है प्रवासी जीवन जीने को मजबूर है साहब हम मज़दूर है यह कैसा दस्तूर है कुछ भी हो पिटता गरीब, मजदूर है थक कर हुए हम चूर-चूर है साहब हम तो मजदूर है माना चारों तरफ फैली महामारी है देश चलाने में हमारी भी तो भागीदारी है तो हमारे प्रति भी बनती कुछ आपकी जिम्मेदारी है तो किस बात का आपको गुरूर है जो बन गए क्रूर है क्यों कर दिया हमें इतना मजबूर है साहब हम तो मजदूर है।। @a_anands_poetry #labour #poetry #lockdown #migrantlabour #corona