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एक पाक सपना उस ने भी देखा था मांग में सिंदूर उसने

एक पाक सपना उस ने भी देखा था
मांग में सिंदूर उसने भी संजोया था।

मोहब्बत में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी उसने
खुद को श्रृंगार के सोलह रूपों से सजाया था।

देखती थी रोज़ ख्वाब जिसके
वो हमराही ही उसकी ज़िंदगी को नरक कर आया था।

कहती हैं दुनिया ये सब कर्मों का फ़ल हैं
फिर क्यों मौन हो जाते थे सब जब वो पूछती कि 
पाक मोहब्बत में वैश्या बना देना कौनसा कर्मफल हैं।

©Buddywrites
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nikhilagarwal1128

Buddywrites

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