"गिरफ़्त" रूह अब आजाद होना चाहती है, इस गिरफ्त से निकलकर आसमाँ, में बिखर जाना चाहती है , उम्मीदों का सफ़र तय करते करते, अब पांव थकने लगे हैं , अजनबी रास्तों में अपने अब कहीं, बिखरने लगे हैं , रूह अब आज़ाद होना चाहती है , अंधेरे से निकलकर कहीं दूर, अनंत में अब खो जाना चाहती है, शिकवे गिले अब और नहीं सह सकते, हकीकत से खुद को अब नहीं मोड़ सकते, मशाल हाथ में लिए एक लम्बा सफ़र तय किया है, सूरज ढ़लने से पहले हर सुबह का इंतजार किया है, वक़्त अब तकल्लुफ़ देने लगा है, आहिस्ता आहिस्ता समय अब दौड़ने लगा है, रूह का साथ भी अब धीरे धीरे उखड़ने लगा है, वो अब आजाद होना चाहती है, इस गिरफ्त से निकलकर आसमाँ के अनंत में खो जाना चाहती है || ©parijat #ajadi#giraft #Photos