मैं चाहतों का खंडहर हूं चाहतों की दौड़ में मेरी चाहतें मुझे निगल गयीं आर्ज़ुओं को क्या कहूँ नासूर की तरह फैल कर चाहतें,चाहतों को ही छल गयीं आकांक्षा बढ़ उच्चाकांक्षा हुईं उच्चाकांक्षा बढ़कर महत्वाकांक्षा फिर सुरसा बन, खुशियां निगल गयीं इक प्रेम की तमन्ना थी एक साथ कि थी अभिलाषा ये कागजों के बोझ तले सारी रूमानियत कुचल गयी मैं चाहतों का खंडहर हूं चाहतों की दौड़ में मेरी चाहतें मुझे निगल गयीं #खंडहर #चाहतें #ख्वाहिशें