आजाद हूं और आजाद होकर भी बंधी हूं कहीं न कहीं जमाने की बेड़ियों में कभी कभी दुबक जाती हूं इन बेड़ियों के पीछे ताकि बेड़ियों की पकड़ से ढीली होकर कही गिर न जाऊं मैं उस कुएं में जिसे जमाने ने खोदा है सिर्फ लड़कियों के लिए...