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प्रकृति का संतुलन प्रकृति कराह कर कह रही है कर पु

प्रकृति का संतुलन

प्रकृति कराह कर कह रही है कर पुकार
क्यूँ मानव तुम कर रहे मेरे प्रति अत्याचार
नित्य कर रहा है तू प्रकृति पर कुठाराघात
मैं भी अगर पहुँचा जाऊंँ तुझे हृदयघात 
दे जाऊंँ मैं भी तुमको कठोर अघात
क्या मैं बताऊँ हृदय का अपने बलाघात
मैं भी बन जाऊंँ तुझ जैसा हृदयविहीन
कर नहीं पाओगे तुम मुझे कभी भी अपने अधीन

अनुशीर्षक में://👇👇👇    

 क्या तुम्हारी आत्मा तुम्हें नहीं झकझोरती
क्या तुम्हारे किसी काम में बाधा हूंँ मैं बनती
जहाँ तुम पैदा हुए उसको संतुलित रखना तुम्हारा परमकर्तव्य
आज़ और अभी से मन में ले लो तुम संकल्प
लेकिन मैं हूंँ हृदय से प्रकृति एक स्त्री माँ हूंँ
अपने ही बच्चे को कैसे चोट पहुंँचा दूँ
तुम भी सोचो मेरे प्रति अपना कर्तव्य निभा दूंँ
मैं ही मानव को रास्ता दिखा दूंँ
प्रकृति का संतुलन

प्रकृति कराह कर कह रही है कर पुकार
क्यूँ मानव तुम कर रहे मेरे प्रति अत्याचार
नित्य कर रहा है तू प्रकृति पर कुठाराघात
मैं भी अगर पहुँचा जाऊंँ तुझे हृदयघात 
दे जाऊंँ मैं भी तुमको कठोर अघात
क्या मैं बताऊँ हृदय का अपने बलाघात
मैं भी बन जाऊंँ तुझ जैसा हृदयविहीन
कर नहीं पाओगे तुम मुझे कभी भी अपने अधीन

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 क्या तुम्हारी आत्मा तुम्हें नहीं झकझोरती
क्या तुम्हारे किसी काम में बाधा हूंँ मैं बनती
जहाँ तुम पैदा हुए उसको संतुलित रखना तुम्हारा परमकर्तव्य
आज़ और अभी से मन में ले लो तुम संकल्प
लेकिन मैं हूंँ हृदय से प्रकृति एक स्त्री माँ हूंँ
अपने ही बच्चे को कैसे चोट पहुंँचा दूँ
तुम भी सोचो मेरे प्रति अपना कर्तव्य निभा दूंँ
मैं ही मानव को रास्ता दिखा दूंँ