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प्रिय फ़ुरसत, तुम मिलती नहीं सभी को, हर कोई तुम्ह

प्रिय फ़ुरसत,

तुम मिलती नहीं सभी को, हर कोई तुम्हारा तलबगार है
तुम  मिल जाती जब जब, तुम से ही फिर पूरा संसार है।

तुम जानती हो मैंने सोचा नहीं था कि तुम्हें कभी कुछ लिख पाऊँगा, पर फिर एक ख़ास शख़्स ने कहा तुम्हें लिखूँ, पर मन में था क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ.. अब कलम उठाई है, तुम और वो खास शख़्स तय करना कितना तुम्हारी उम्मीदों पर खरा उतरा हूँ..।

तुम जानती हो अक्सर वक़्त गुजर जाता है तुम्हारी तमन्ना में और उस तम्मना मैं खयाली पुलाव बनाता हूँ कि तुम मिलोगी तो यह करूँगा, वह करूँगा, ऐसे करूँगा, वैसे करूँगा पर.. तुम जानती हो दुनिया का सबसे भारी शब्द है 'पर'.. मेरा मन करता है जैसे टूटा हुआ पत्ता किसी शाख से साहिल के करीब आ जाता है वैसे ही मैं तुम्हारे  करीब, तुम्हारी गोद में आकर अपनी थोड़ी थकान मिटा दूँ, और ठहर जाऊँ थोड़ी सी देर..। तुम जानती हो फूरू(तुम्हें याद है ना मैं तुम्हें प्यार से फूरू बुलाता हूँ) कि जब जब चैन नहीं मिलता तकलीफ़ों से तुम्हारी बहुत याद आती है..।

मैं चाहता हूँ दिल से कुछ कस्ब-ए - हुनर कर लूँ पर फिर वही तुम नहीं मिलती, पर आज सब को पीछे रखकर तुम्हारी ओर आया हूँ और मुझे पता है तुम हमेशा की तरह मुझसे घंटों बाते करोगी.. ।

ये सब तो मैंने अपने दिल की कही, तुम बताओ तुम कैसे किसके हिस्से आती हो, कैसे, कितना, कब, किसको मिलती हो?

तुम जानती हो, जब आखिरी बार तुमने मुझे फोन किया था और कहा था तुम मिलने आओगे, तब तुम्हारे लिए कुछ लिखा था, पर फिर इस महामारी ने सारे रास्ते आने जाने के बंद कर दिए और तुम आ ना पाई पर इस ख़त में तुम्हें भेज रहा हूँ, पढ़कर बताना
प्रिय फ़ुरसत,

तुम मिलती नहीं सभी को, हर कोई तुम्हारा तलबगार है
तुम  मिल जाती जब जब, तुम से ही फिर पूरा संसार है।

तुम जानती हो मैंने सोचा नहीं था कि तुम्हें कभी कुछ लिख पाऊँगा, पर फिर एक ख़ास शख़्स ने कहा तुम्हें लिखूँ, पर मन में था क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ.. अब कलम उठाई है, तुम और वो खास शख़्स तय करना कितना तुम्हारी उम्मीदों पर खरा उतरा हूँ..।

तुम जानती हो अक्सर वक़्त गुजर जाता है तुम्हारी तमन्ना में और उस तम्मना मैं खयाली पुलाव बनाता हूँ कि तुम मिलोगी तो यह करूँगा, वह करूँगा, ऐसे करूँगा, वैसे करूँगा पर.. तुम जानती हो दुनिया का सबसे भारी शब्द है 'पर'.. मेरा मन करता है जैसे टूटा हुआ पत्ता किसी शाख से साहिल के करीब आ जाता है वैसे ही मैं तुम्हारे  करीब, तुम्हारी गोद में आकर अपनी थोड़ी थकान मिटा दूँ, और ठहर जाऊँ थोड़ी सी देर..। तुम जानती हो फूरू(तुम्हें याद है ना मैं तुम्हें प्यार से फूरू बुलाता हूँ) कि जब जब चैन नहीं मिलता तकलीफ़ों से तुम्हारी बहुत याद आती है..।

मैं चाहता हूँ दिल से कुछ कस्ब-ए - हुनर कर लूँ पर फिर वही तुम नहीं मिलती, पर आज सब को पीछे रखकर तुम्हारी ओर आया हूँ और मुझे पता है तुम हमेशा की तरह मुझसे घंटों बाते करोगी.. ।

ये सब तो मैंने अपने दिल की कही, तुम बताओ तुम कैसे किसके हिस्से आती हो, कैसे, कितना, कब, किसको मिलती हो?

तुम जानती हो, जब आखिरी बार तुमने मुझे फोन किया था और कहा था तुम मिलने आओगे, तब तुम्हारे लिए कुछ लिखा था, पर फिर इस महामारी ने सारे रास्ते आने जाने के बंद कर दिए और तुम आ ना पाई पर इस ख़त में तुम्हें भेज रहा हूँ, पढ़कर बताना