माँ.. बहुत सी बात, न कह सकू, न सुन सकू तुमको, इतनी सारी बातों का ,मैं क्या करूँगी रखकर जिनको, रखती थी मैं, बहुत संभालकर तुमसे कहने को, जिनको किसी को कहे बिना बस, तुमसे कहने को, कपड़े , रंग हर सवाल हर चीज का ख्याल , मेरी गलतियां, मेरी नादानियां ..सबकुछ जो था सुनाने को, अब भी है माँ, मैं बोलती हूं अब भी, सुनने के लिए कुछ जवाब , आ जाओ माँ मुझे समझाने को मुझे बताने को, सबकुछ कितना अधूरा है.. मेरी माँ... तुमको बताने को।। ©Shivani Singh माँ.. बहुत सी बात, न कह सकू, न सुन सकू तुमको, इतनी सारी बातों का ,मैं क्या करूँगी रखकर जिनको, रखती थी मैं,