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बेटा हूँ ख़्वाबों की जंजीरों पर जिंदगी के गीत. ल

बेटा हूँ  ख़्वाबों की जंजीरों पर जिंदगी के  गीत. लिखता हूँ,
घर  का  सबसे  बड़ा  बेटा हूँ, हर  रोज. सीखता हूँ!

मिरा मुकद्दर लिखा  था  या  की  शरारत  लिखने में,
हर रोज  खरीदता  हूँ  जरूरत, हर  रोज  बिकता हूँ!

ख़ुशी की दास्तान  मिलती भी है  तो बंजर  हो जाती,
बारिश में भीगता काग़ज़ के लिए, धूप में  सिकता हूँ!
बेटा हूँ  ख़्वाबों की जंजीरों पर जिंदगी के  गीत. लिखता हूँ,
घर  का  सबसे  बड़ा  बेटा हूँ, हर  रोज. सीखता हूँ!

मिरा मुकद्दर लिखा  था  या  की  शरारत  लिखने में,
हर रोज  खरीदता  हूँ  जरूरत, हर  रोज  बिकता हूँ!

ख़ुशी की दास्तान  मिलती भी है  तो बंजर  हो जाती,
बारिश में भीगता काग़ज़ के लिए, धूप में  सिकता हूँ!