जिंदगी की ठोकरें खाई और दर्द पीना सीख गया, गरीब का बच्चा था शायद मुफ़लिसी में जीना सीख गया, माँ थी मजदूर शायद उसकी, भूख लगी तो ऑंसू पीना सीख गया, खेल थे नहीं कई सारे उसके, बनाई मिट्टी की गुड़िया, और खुश रहना सीख गया, नहीं थी भूख भरपेट खाने की, दो रोटी,कटोरे में पानी लिया, और पीना सीख गया, नहीं था मकान आलीशान उसका, घर की दरारों से चांदनी को देखा, और पीना सीख गया, नहीं थी ज़िद कई सारी उसकी, एक रूपया पाया, और अमीर रहना सीख गया, मेहनत बचपन में ही कर दी शुरु, कम उम्र में क्या होता है, पसीना सीख गया, गैरत से जिया,मरा इज्ज़त से, फटे कपड़ों में भी, अदब से रहना सीख गया, गरीब का बच्चा था साहिब, मुफ़लिसी में जीना सीख गया!!!! नीलम भोला गरीब का बच्चा