तेरे ही प्यार के रंगों की ओढ़ के चुनरिया पिया मैं तो तेरे ही रंगों में रंग गई, कल तक थी तुझसे बिल्कुल अनजान, प्यार का बंधन करके तेरी हो गई। तेरे नाम की लगाई है माथे पर बिंदिया तेरे ही नाम की हाथों में मेहंदी रचाई है, लाल जोड़ा पहन के सजी हूँ आज मैं झिलमिल सितारों वाली चुनरी मंगाई है तेरी दुल्हन बनी हूँ माँग में भरकर तेरे नाम का सिंदूर सोलह श्रृँगार पूरे किये हैं बड़ी मन्नतों व दुआओं के बाद जिंदगी में यह वस्ल की चाहत की रात आई है। तेरा साथ पाकर तो जिंदगी का हर मुश्किल सफर भी हँसते हँसते कट जाएगा, तेरे प्यार की खुशियों की छाँव तले जिंदगी के सारे गम धीरे धीरे खिसक जाएंगे। नमस्ते रचनाकारों 🙏🏼 जैसा कि आप सभी जानते है आदरणीया सुनीता जौहरी जी द्वारा kitab-e-zindagi मंच पर हर शुक्रवार, kitab-e-ras क्लास आयोजित किया जा रहा है जिसमें हर शुक्रवार को एक रस के बारे में जानकारी दी जाएगी, कल kitab-e-ras का प्रथम भाग लाया गया था, जिसमें आप सभी ने पढ़ा.......... ⚡रस क्या है? स्थायी भाव क्या है? ⚡श्रृंगार या शृंगार रस क्या है,किसे कहते हैं? ⚡श्रृंगार या शृंगार रस का स्थायी भाव क्या है? ⚡श्रृंगार रस का आलंबन कौन है? ⚡श्रृंगार रस का उद्दीपन कौन- कौन है ?