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चलो बहुत दूर निकल जायें चलते-चलते उम्र भी उकताने ल

चलो बहुत दूर निकल जायें चलते-चलते
उम्र भी उकताने लगी  अब तो ढलते-ढलते
                    रात के बाद सहर होगी मालूम था उसको
                    शमा यूं ही नहीं  बुझी जलते-जलते
नफरत की बर्फ इस साल गिरी जाड़ों में
क्यों न पिघलेगी  कभी वो  गलते-गलते
                    साथी मेरे कुछ आज जरा तेज तो चलो 
                   कई ख़्वाब जगे हैं पलकों में पलते-पलते.

©कमल कांत #ग़ज़ल #हिंदीकविता #अर्ज़_किया_है
चलो बहुत दूर निकल जायें चलते-चलते
उम्र भी उकताने लगी  अब तो ढलते-ढलते
                    रात के बाद सहर होगी मालूम था उसको
                    शमा यूं ही नहीं  बुझी जलते-जलते
नफरत की बर्फ इस साल गिरी जाड़ों में
क्यों न पिघलेगी  कभी वो  गलते-गलते
                    साथी मेरे कुछ आज जरा तेज तो चलो 
                   कई ख़्वाब जगे हैं पलकों में पलते-पलते.

©कमल कांत #ग़ज़ल #हिंदीकविता #अर्ज़_किया_है
kamalkantjoshi7052

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