ग़ज़ल :- 2122 1122 1122 22 ✍️ दिल-ए-शायर की दिखावे भरी निसबत से जां खू़ब वाकि़फ़ रहे हम भी तिरी फि़तरत से जां चूम लेता मिरी नाराजगी में मुझ को तू बच नहीं पाता हूँ शातिर की दी रिश्वत से जां चाहिए किस को तिरे झूठे से वादे सारे हम परेशान हुए अब तो मुहब्बत से जां क्या ख़फा़ होंगे किसी गैर से या तुम से हम है शिकायत मिरी तो अपनी ही क़िस्मत से जां ©Divu ग़ज़ल :- 2122 1122 1122 22 ✍️ #humantouch #divu_poetry #Shayar #ghazal #Shayari