वो बेतुकी बातों के पीछे पड़ जाती, बातों से कभी भोली तो कभी कमीनापन दिखाती वो आईने में खुद को बारंबार निहारती और हमसे सुन्दर होना न होना जरूरी नहीं इस बात पर हमेशा हीं लड़ जाती मेरे सामने तो खूब बड़ बड़ बोलती और अकेले में गाने गुनगुनाती तूफान सी तेज़ वो, कैंची सी धार बात में रखती समय को भी बख़ूबी फुर्सत के पल में करती उसमें एक नहीं एक हजार ऐब दिख जाती पर सच कहूँ तो बड़ी अच्छी सी मन को लगती एक पूरी की पूरी "झल्ली" सी लड़की है लगती वो कभी कड़क धूप तो कभी छाँव सी लगती वो तो पूरी की पूरी झल्ली सी लगती राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी (भाग-1) पगली