बेहतर रोजगार और जिंदगी की तलाश के अलावा हिंसा और युद्ध ग्रस्त इलाकों में मानवीय प्लेन की अनेक घटनाएं विस्तृत रूप में दर्ज हो रही है खुद भारत से फर्जी परिषद से लेकर ब्रिटेन अमेरिका जाकर उसे कामयाबी दर्ज करने वाले हजारों भारतीयों की कहानी बड़े गर्व के साथ कहीं सुनाई जाती है ऐसे में उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाना और वहां हासिल की डिग्री के आधार पर पूरे देश में या फिर देश में नौकरी की खोज में हाल में दर्शकों में काफी तेजी आई है यह कैसे अंजाम तक पहुंच रही है इसके बाद छात्रों के रूप में बंद होने के कारण छात्रों का भविष्य अंधकार में हो गया है मेडिकल की पढ़ाई करना है रोज याद यूक्रेन आदि देशों में मेडिकल की पढ़ाई का भारतीय छात्रों से कर्ज मुख्य तत्व होते हैं पहले ही वजह है कि मेडिकल की पढ़ाई सस्ती होना और दूसरी भारतीय वनों के मुकाबले आसानी से झांक ले मिल जाना मोटे तौर पर भारत में निजी मेडिकल कॉलेज 10 1200000 रुपए प्रति भी इसलिए जाती है जो साडे चार लाख से या 500000 के कोर्स के मुताबिक ₹50000 खर्च के करीब बैठती है इसके मुकाबले यूक्रेन आदि देशों में निजी मेडिकल कॉलेज की सालाना फीस ₹400000 होती है ऐसे निकल जाती है भारत की सरकारी मेडिकल कॉलेज की फीस कम दो करीब ₹200000 सालाना लेकिन उनके दाखिला लेना आसान नहीं है इसकी प्रतिक्रिया बदलो सीटों की कम संख्या है जिसके लिए बहुत महामारी होती है लोकसभा में 20 से मार्च के एक प्रश्न के उत्तर में केंद्र सरकार अश्विनी कुमार चौबे ने बताया था कि भारत में 551 मेडिकल कॉलेज में कुल 82906 एमबीबीएस सीट है ©Ek villain #मेडिकल शिक्षा की कठिन राह #Nofear