लॉक डाउन के साथ शुरू हुई कोरोना के साथ जंग हमको पहले एक माह के अंत में ही बीस साल पीछे धकेल कर ले गई। देश के गाँव की आबादी मंहगाई के साथ अपने उत्पाद (अनाज,दूध,सब्जियाँ, दालें,) सस्ती क़ीमत पर बेचने को मजबूर हुए। मुझे आश्चर्य तो दूध की क़ीमत को लेकर हुआ जो 25 रुपये प्रति लीटर के भाव स्थानीय दूधियों द्वारा ख़रीदा जा रहा था। गेहूँ,सरसों,बगैरह भी और चक्की या मिल वाले स्टॉक करने में व्यस्त थे। किराने से लेकर फलवाले तक 6 गुनी क़ीमत वसूल रहे थे। जर्दा तंबाकू सिगरेट बगैरह के 15 से 20 गुना। हद है। #1_मई_तक_लॉकडाउन_के_साथ_राजस्थान_सतर्क_है मैं कहता रहा हूँ। आगे भी शासन और प्रशासन की गतिविधियों में अपने शब्दों से सहयोग देता रहूँगा। #सार्वजनिक_अनुशासन_की_कमी_एवं_अशिक्षा का प्रभाव तो था ही,इसके साथ ही समाज में नए वर्ग भी देखे जो, स्वयं के लाभ से आगे कुछ नही सोचते।तो वहीं नशे की गिरफ़्त में बच्चों से लेकर युवा और हर उम्र के लोगों को तड़पते देखा।हद तो ये थी कि शराब की माँग को लेकर मोदी जी तक के लिए अनुरोध वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर साझा किए गए। देश किधर जा रहा है किसी को नहीं पता बस सब अपने फा