दया, याचना, धैर्य, क्षमा, जब सारे निष्फल हो जाते हैै। प्रतिकार की ज्वाला उठती हैै, सारे मार्ग शांति के खो जाते है।। शांति का कोई मार्ग न छुूटे, किन्तु क्षमाशील की भी मर्यादा है। होना विनाश तो उसका तय है, जो घड़ा पाप का भरने पे आमादा है।। प्रभू संग सेना सिन्धु लांघि गए, फिर भी शांति दूत पठाया। अपने अंहकार में मस्त दशानन, क्षमाशीलता समझ न पाया।। सतत क्षमादान पाकर भी जो, करता अपराध निरन्तर है। वो महानाश का भागी है, उलझता काल उठाए सर पर है।। हर क्षमादान पे अट्टहास किया, शिशुपाल ने लज्जा खोकर। सौ अपराधों तक क्षमा किया फिर, वासुदेव ने चक्र उठाय़ा बेबस होकर।। भूमि पांच गांवों की पाकर भी, रह लेते; सह लेते घोर अपमान। अगर मानते प्रस्ताव सुयोधन, कदापि नहीं जाते पाण्डु संग्राम।। दया श्रेष्ठ है; सब धर्मों में, उस सीमा तक करते जाओ। खुद शत्रु भी क्षमाशील कहे, जब तक ना कायर कहलाओ।। गगन कामत #क्षमा की सीमा