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यार किस ठौर गुम हो गये।। मैं नहीं , ग़ैर तुम



यार किस ठौर  गुम हो गये।।
मैं  नहीं ,  ग़ैर  तुम  हो गये।।

घाव   ही   घाव   देते   रहे-
किस कदर बेरहम हो गये।।

जबकि होना था मरहम तुम्हें-
रूह के तुम  जख़म हो गये।।

बेवफ़ाई   के   माहौल   में -
पत्थरों  के  सनम  हो गये।।

चैन से  जी  न पाये  कभी-
मनमें जिनके भरम हो गये।।

सिर मुड़ाते ही  ओले  पड़े-
ख़ूब अहले करम  हो गये।।

जबसे ख़ुद पर मैं हँसने लगा-
दर्द दिल के ये कम हो गये।।

राम  रहमान   लड़ने  लगे-
जब से  दैरो हरम  हो गये।।

झूठ के सामने  सच ने जब-
सर उठाया  कलम हो गये।।

जब सियासत नपुंसक हुई-
माफिया  मुहतरम हो गये।।

है  न  मुमकिन  मुझे  मेटना-
'अक्स'दिल में रकम हो गये।।

©JUGNU RAHI
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