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नहीं पे, नहीं भी, नहीं था, समझना। दिलों-जां ,कहीं

नहीं पे, नहीं भी, नहीं था, समझना।
दिलों-जां ,कहीं से कहीं था समझना।।
गलत  मशवरे  पे  गई  शाख  अपनी,
कि कितना यकीं पे यकीं था समझना।।

©डॉ मनोज सिंह,बोकारो स्टील सिटी,झारखंड। (कवि,संपादक,अंकशास्त्री,हस्तरेखा विशेषज्ञ 7004349313)
  #यादों का मौसम