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एक मुद्दत से मुझे वो मिला तो नहीं है, इंतेज़ार से

एक मुद्दत से मुझे वो मिला तो नहीं है,
इंतेज़ार से मुझे कुछ गिला तो नहीं है!

मेरी आंखें जो हैं आज आंसुओं से तर,
ये सच्ची मोहब्बत का सिला तो नहीं है!

जिनके खून में रहती है अलग ही गर्मी
साहेब,ये वही 'बांदा' जिला तो नहीं है!

हर बार ज़ख्म लगते हैं सोहबत में तिरी,
कहीं ये तग़ाफ़ुल का सिलसिला तो नहीं है!

अपने लहू से सींचा इश्क़ के पौधे को,
दोबारा इश्क़ का फ़ूल खिला तो नहीं है!

कविराज अनुराग 

तग़ाफ़ुल=लापरवाही
सोहबत=साथ
बांदा= मेरा जिला।

#ghazal  #urdupoetry #yaadein #बांदा_जिला
#कविराज_अनुराग
एक मुद्दत से मुझे वो मिला तो नहीं है,
इंतेज़ार से मुझे कुछ गिला तो नहीं है!

मेरी आंखें जो हैं आज आंसुओं से तर,
ये सच्ची मोहब्बत का सिला तो नहीं है!

जिनके खून में रहती है अलग ही गर्मी
साहेब,ये वही 'बांदा' जिला तो नहीं है!

हर बार ज़ख्म लगते हैं सोहबत में तिरी,
कहीं ये तग़ाफ़ुल का सिलसिला तो नहीं है!

अपने लहू से सींचा इश्क़ के पौधे को,
दोबारा इश्क़ का फ़ूल खिला तो नहीं है!

कविराज अनुराग 

तग़ाफ़ुल=लापरवाही
सोहबत=साथ
बांदा= मेरा जिला।

#ghazal  #urdupoetry #yaadein #बांदा_जिला
#कविराज_अनुराग