कवयित्री का स्वयंवर था एक कवयित्री का स्वयंवर आये थे उसमें एक से बढ़कर एक धुरंधर नहीं थी कोई बंदिशें क्योंकि ये था कवयित्री का स्वयंवर आप तो जानते ही हैं रचनाकारों की नहीं होती कोई सीमायें उनके लिए तो सब कुछ होती है उनकी रचनाएँ उस स्वयंवर में आये थे वेदों के विद्वान और आये थे कुछ वीर महान फिर कया सब करने लगे अपना ज्ञान बखान आया था उसमें एक सामान्य सा दिखने वाला इंसान पर वो भी था एक अच्छा श्रोता इसलिए वो भी नहीं था किसी से कम महान। कवित्री ने कहा, आप क्यों बैठे हैं इतना चुप, सुनायेंगें नहीं अपना कुछ? तब वह श्रोता बोला, मैं हूँ एक अच्छा श्रोता, सुन रहा था ध्यान से सब, बोलने के लिए नहीं ज्यादा कुछ पहले प्रेमी हूँ आपकी रचनाओं का, आपकी कविताओं का, उसके बाद इन रचनाओं की बिन ब्याही माँ का। अब थी तो वह भी एक स्त्री ऊपर से एक कवयित्री फिर क्या उठायी उसने माला, बना लिया उसे वर और डाल दी वरमाला। कहा यूँ तो मिल जाते है, एक से बढ़कर एक सुनाने वाले, बहुत ही कम मिलते हैं ध्यान से सुनने वाले। ― प्रकाम सिंह राजपूत कवयित्री का स्वयंवर । Kavyitri Ka Swayamvar #nojotojabalpur #Kavyitri #Swayamvar #girldesire #desireofagirl #desireofapoetess #psrtruth #psr