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डूबते रहे हम सूरज की तरह, और सुबह की आस में ढलते

 डूबते रहे हम सूरज की तरह,
और सुबह की आस में ढलते रहे..!
एक तरफ़ा मोहब्बत तोड़ती रही,
और अरमाँ सारे जलते रहे..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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