हर सख्श परेशां है यहां, हर चेहरे पर ख़ामोशी है.! कोई हिन्दू है कोई मुस्लिम है, हर लोग यहां पर बंटे है.! हर चेहरे पर डर दीखता है, टूटे अंदर से इंसान है.! आदमी से आदमी डरता हो, यह कैसी सियासी दस्तक़ है.! दंगे में मरते आम लोग, लूट जाती आबरु महिला की.! फुटपाथ पे सोते लोगों पर, चढ़ जाती कार अमीरों की.! #ये_कैसी_दस्तक सियासत की, हर चेहरे पर डर दीखता है.! #अजय57 #डरे_हुए_लोग