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माँ कुछ चीजें हमेशा हमारी समझ से बाहर होती हैं। हम

माँ कुछ चीजें हमेशा हमारी समझ से बाहर होती हैं। हम चाहे कितनी भी कोशिश कर लें नहीं समझ पाते। मैं आज बात कर रहा हूं, नारी वर्ग के बारे में।बचपन से सुनता आ रहा हूं की औरतों को तो भगवान भी नही समझ पाए इंसान क्या चीज़ है। हां, एक हद तक ये सच भी है।
बात कुछ २ साल पहले की है। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी,शाम का वक्त था और मैं बाल कटवाके घर की तरफ लौट रहा था,मैंने जान बुझ के जैकेट नहीं पहन के गया था।जब घर की तरफ लौट रहा था तो ठंड के मारे मेरा बुरा हाल था और कांप भी रहा था। तभी अचानक से मेरे पीछे से एक आवाज आई बेटा कुछ पहन लो नहीं तो ठंड लग जायेगी।मैंने पीछे मुड़ के देखा तो एक औरत जो सर पे कुछ सामान लिए हुए थी और गर्म कपड़ों के नाम पे उसके पास एक फटा पुराना शॉल था जिससे वो खुद को ठंड से बचाने की नाकाम कोशिश कर रही थी। इतना बोलते ही वो तेजी से आगे की और बढ़ गई।पता नहीं उसने मेरा जवाब सुना या नहीं पर उसकी आवाज में एक मां जैसी फिकर थी।अगर मेरी मां भी साथ होती तो वो यही बोलती जो वो एक अनजान औरत बोल के चली गई।उसका कोई रिश्ता तो नहीं था मुझसे पर फिर भी उसको फिकर मेरी मां जैसी थी। मैं आज तक नहीं समझ पाया कि। क्या जरूरत थी उसे मुझे नसीहत देने की और लोगों की तरह वो भी तो चुप चाप अपने रास्ते से गुजर सकती थी। बस इस कहानी से ये कहना चाहता हूं की सोच बदलो हर औरत में तुम्हें मां नजर आयेगी।

©parinda #my_burnt_diary #Maan #narishakti #protest_against_rape 

#माँ
माँ कुछ चीजें हमेशा हमारी समझ से बाहर होती हैं। हम चाहे कितनी भी कोशिश कर लें नहीं समझ पाते। मैं आज बात कर रहा हूं, नारी वर्ग के बारे में।बचपन से सुनता आ रहा हूं की औरतों को तो भगवान भी नही समझ पाए इंसान क्या चीज़ है। हां, एक हद तक ये सच भी है।
बात कुछ २ साल पहले की है। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी,शाम का वक्त था और मैं बाल कटवाके घर की तरफ लौट रहा था,मैंने जान बुझ के जैकेट नहीं पहन के गया था।जब घर की तरफ लौट रहा था तो ठंड के मारे मेरा बुरा हाल था और कांप भी रहा था। तभी अचानक से मेरे पीछे से एक आवाज आई बेटा कुछ पहन लो नहीं तो ठंड लग जायेगी।मैंने पीछे मुड़ के देखा तो एक औरत जो सर पे कुछ सामान लिए हुए थी और गर्म कपड़ों के नाम पे उसके पास एक फटा पुराना शॉल था जिससे वो खुद को ठंड से बचाने की नाकाम कोशिश कर रही थी। इतना बोलते ही वो तेजी से आगे की और बढ़ गई।पता नहीं उसने मेरा जवाब सुना या नहीं पर उसकी आवाज में एक मां जैसी फिकर थी।अगर मेरी मां भी साथ होती तो वो यही बोलती जो वो एक अनजान औरत बोल के चली गई।उसका कोई रिश्ता तो नहीं था मुझसे पर फिर भी उसको फिकर मेरी मां जैसी थी। मैं आज तक नहीं समझ पाया कि। क्या जरूरत थी उसे मुझे नसीहत देने की और लोगों की तरह वो भी तो चुप चाप अपने रास्ते से गुजर सकती थी। बस इस कहानी से ये कहना चाहता हूं की सोच बदलो हर औरत में तुम्हें मां नजर आयेगी।

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