।। निर्झर निर्झर प्रेम स्वरूपा अति पावन धरूँ पग पग आशीषा नित्य सुमिरत होत हिय आकाशा हृदयी बसहुँ सब शंकर नाथा ।। DQ : ।। निर्झर निर्झर प्रेम स्वरूपा अति पावन धरूँ पग पग आशीषा नित्य सुमिरत होत हिय आकाशा