हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए! हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए! हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर हम लड़ेंगे साथी! क़त्ल हुए जज्बातों की क़सम खाकर, बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर, हाथों पर पड़े घट्टों की क़सम खाकर, हम लड़ेंगे साथी! हम लड़ेंगे तब तक जब तक वीरू बकरिहा बकरियों का मूत पीता है खिले हुए सरसों के फूल को जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते कि सूजी आँखों वाली गाँव की अध्यापिका का पति जब तक युद्ध से लौट नहीं आता! हम लड़ेंगे साथी! ✍️अवतार सिंह संधु 'पाश' (9 सितंबर 1950-23मार्च 1988) #पाश