वैलयू वाटएवर यू हैव, बी इट मनी, टाइम और अ परसन प्रसाद जी ने कहा है कि 'प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु-से सरल ह्रदय की वस्तु है'। मुझे लगता है प्रसाद जी ने यह लिखते वक़्त बहुत मन से चाहा होगा कि लोग प्रेम में चतुर न बनें। जिस काम में चतुराई शामिल होती है, वह खेल बन जाता है। खेल में आप केवल ख़ुद की जीत के बारे में ही सोचते हो जबकि प्रेम में आप दो लोगों की जीत को ही जीत कह सकते हो, यदि सिर्फ एक जीतता है, तो वह दोनों की हार होती है। प्रेम में कई कसौटियाॅं होती हैं या यूॅं कहें कि प्रेम का पूरा सफ़र कसौटियों के ही इर्द-गिर्द घूमता है।