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शीर्षक - "नादान परिंदा" (कविता) न ख़ुद ही समझ ह

शीर्षक - "नादान परिंदा" 
 (कविता)

न ख़ुद ही समझ है मेरी,
किसी को समझाऊ कैसे;

इन तूफानी हवाओं में,
उड़ कर जाऊ कैसे;

देखी तो है मंज़िल की,
वो हर राह, हर गली;

कुण्डी बाहर से लगी है,
पिंजरे में जान बचाऊ कैसे;

वो अन्न पानी,झूठा प्यार,
तो देता है मुझे मगर;

मेरी आजादी छिन ली है,
अबोल प्राणी हूं,बताऊ कैसे;

मैं नादान परिंदा हू है ईश्वर,
स्वार्थी जन को समझाऊ कैसे;

©Navin charpota #कैदी #परिंदा
 #savebirds
 #pustakratna 
#deedarealfaj 
 #Banswarabolg 

#lovebirds
शीर्षक - "नादान परिंदा" 
 (कविता)

न ख़ुद ही समझ है मेरी,
किसी को समझाऊ कैसे;

इन तूफानी हवाओं में,
उड़ कर जाऊ कैसे;

देखी तो है मंज़िल की,
वो हर राह, हर गली;

कुण्डी बाहर से लगी है,
पिंजरे में जान बचाऊ कैसे;

वो अन्न पानी,झूठा प्यार,
तो देता है मुझे मगर;

मेरी आजादी छिन ली है,
अबोल प्राणी हूं,बताऊ कैसे;

मैं नादान परिंदा हू है ईश्वर,
स्वार्थी जन को समझाऊ कैसे;

©Navin charpota #कैदी #परिंदा
 #savebirds
 #pustakratna 
#deedarealfaj 
 #Banswarabolg 

#lovebirds