शीर्षक - "नादान परिंदा" (कविता) न ख़ुद ही समझ है मेरी, किसी को समझाऊ कैसे; इन तूफानी हवाओं में, उड़ कर जाऊ कैसे; देखी तो है मंज़िल की, वो हर राह, हर गली; कुण्डी बाहर से लगी है, पिंजरे में जान बचाऊ कैसे; वो अन्न पानी,झूठा प्यार, तो देता है मुझे मगर; मेरी आजादी छिन ली है, अबोल प्राणी हूं,बताऊ कैसे; मैं नादान परिंदा हू है ईश्वर, स्वार्थी जन को समझाऊ कैसे; ©Navin charpota #कैदी #परिंदा #savebirds #pustakratna #deedarealfaj #Banswarabolg #lovebirds