मोहब्बते इलाही कोई हम से न पूछिए, रागे ज़िन्दगी का, वो साज़ न पूछिए... इबादत मे उसकी दिल भी झुकादिया है, धड़क ते दिल की, वो धड़कन न पूछिए. उस की याद मे वो शब भर का क़याम, तहजुत मे मिली है,वो लज्ज़त न पूछिए . उस के घर जैसा कोई घर ही नहीं है, महबूब के दर की, वो कैफियत न पूछिए. बसा हुआ है वो मनज़र अब भी दिल मे, हालत ए अहराम मे, वो लब्बेक न पूछिए. दिल से निकली हुई हर दुआ क़ुबूल होती है, मेरी ज़बान मेरा ,वो लहजा ए मक़बूल न पूछिए. ख़ोफे इलाही से यूंही ज़ारो क़तार रोना, हम से हमारी बीनाई का, वो राज़ न पूछिए... (Hasan Hassas) #HasanHasssas shayari