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प्रेम की तलाश में, मैं एक स्त्री, हर एक के सानिध

प्रेम की तलाश में, 
मैं एक स्त्री, 
हर एक के सानिध्य में, 
अपने आपको खोती आयी हूँ.
चिंतन समाज का,
अस्तित्व अपना, अपनों को देती आयी हूँ.
मैं एक स्त्री, 
प्रेम की तलाश में, 
अस्तित्व अपना खोती आयी हूँ.
अपनों से अब विवेचना करना है,
समाज से भी पूछना है,
क्या मैं स्त्री, 
खुद से प्रेम कर सकती हूँ?

©Rudeb Gayen
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