ध्यान तभी उपयोगी है जब उसमें व्यवधान ना आए। कभी-कभार का ध्यान गड़बड़, ख़तरनाक हो जाता है। दिन में जो एकाध घण्टे का ध्यान होता है, ये उपयोगी कम, हानिकारक ज़्यादा होता है। ध्यान को जीने का आधार बनाना पड़ता है - उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जगते ध्यानस्थ रहना होता है, तब ध्यान सच्चा हुआ। -आचार्य प्रशांत- ©कुमार रंजीत ध्यान #अध्यात्मिक Amita Tiwari